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मधुबनी : पिता ने कहा था श्राद्धभोज और कर्मकांड पर लाखों रुपए खर्च न कर एक पुल बनवाना, पांच लाख की लागत से पुल बनकर तैयार

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डेस्क:
हम अभी ऐसे युग में रह रहें है जहां अपने माता-पिता को घर के बाहर कर देने की खबरें आम हैं। लेकिन जब भी माता-पिता की सेवा करने की बात की जाती है, तब लोग केवल श्रवण कुमार का नाम लेते है। श्रवण कुमार यह नाम ऐसा है जिसे शायद ही कोई नहीं जानता होगा। श्रवण कुमार ने माता और पिता की जिस प्रकार सेवा की शायद ही आज के युग में कोई बेटा कर पायेगा। आज हम आपसे इस युग के श्रवण की एक कहानी साझा करेंगे। जिसने पिता के मरने के बाद उनकी अंतिम इच्छा पूरी की है।

श्राद्धभोज और कर्मकांड पर लाखों रुपए खर्च नहीं करना
ये कहानी है बिहार के मधुबनी जिले की है। जहां एक बेटे ने अपनी अंतिम इच्छा पूरी की है। दरअसल पिता ने बेटे से कहा था- मेरे मरने के बाद श्राद्धभोज और कर्मकांड पर लाखों रुपए खर्च नहीं कर उसी पैसे से एक पुल निर्माण करवा कर ग्रामीणों को समर्पित कर देना। पिता का नाम महादेव झा है। उनके बेटे पूर्व उपसरपंच विजय प्रकाश झा उर्फ सुधीर झा ने अब गांव में आरसीसी पुल बनवाकर पिता की इच्छा पूरी की है। 

आरसीसी पुल बनवाने को पिता ने कहा था
विजय प्रकाश ने बताया कि 2019 में बरसात के बाद पिता बगीचा और खेत देखने जा रहे थे। सड़क पर पुल नहीं होने के कारण वह कीचड़ भरे पानी में फिसल कर गिर पड़े। उन्हें काफी चोट लगी। इसी के बाद पिता महादेव झा ने बेटे से संकल्प लिया और कहा- उनकी मृत्यु के बाद समाज में भोज नहीं करना। उस भोज के पैसे से पुल बना देना। इससे लोगों को आवागमन में काफी सुविधा होगी। उनके बेटे ने पिता की इच्छा के अनुसार श्राद्ध भोज के बदले आरसीसी पुल बनवाया है। पुल बनवाने पर पांच लाख रुपए खर्च हुए हैं।

पुल अब पूरी तरह कंप्लीट 
16 मई 2020 को विजय प्रकाश झा के पिता का देहांत हो गया था। विजय प्रकाश ने बताया कि कोरोना के कारण निर्माण में विलंब हुआ। पुल अब पूरी तरह कंप्लीट हो चुका है। सिर्फ किनारे से मिट्टी भरनी है। हालांकि, लोगों का आवागमन शुरू हो चुका है। उन्होंने पिता महादेव झा के नाम का बोर्ड लगा पुल समाज को समर्पित कर दिया है।

समाज को समर्पित कर मिसाल कायम 
प्रकाश झा ने दिवंगत पिता महादेव झा की याद में करीब पांच लाख रुपये से पुल बनाकर और उसे  समाज को समर्पित कर मिसाल कायम की है।इसके साथ  उन सभी लोगों को एक संदेश दिया है, जो अपने माता-पिता की इज्जत नहीं करते है। उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने को छोड़ देते है। बता दें कि उनके पिता स्व. महादेव झा अरुणाचल प्रदेश में सेकेंडरी स्कूल में प्रधानाध्यापक रहे थे। वर्ष 2000 में रिटायरमेंट के बाद से अपने गांव में ही रह रहे थे।